शुक्रवार, 6 मार्च 2015

वीर अमरसिंह

बीकानेर का राजकुमार वीर अमरसिंह

बीकानेर के राजा रायसिंहजी का भाई अमरसिंह किसी बात पर दिल्ली के बादशाह अकबर से नाराज हो बागी बन गया था और बादशाह के अधीन खालसा गांवों में लूटपाट करने लगा इसलिए उसे पकड़ने के लिए अकबर ने आरबखां को सेना के साथ जाने का हुक्म दिया | इस बात का पता जब अमरसिंह के बड़े भाई पृथ्वीराजसिंह जी को लगा तो वे अकबर के पास गए बोले-
" मेरा भाई अमर बादशाह से विमुख हुआ है आपके शासित गांवों में उसने लूटपाट की है उसकी तो उसको सजा मिलनी चाहिए पर एक बात है आपने जिन्हें उसे पकड़ने हेतु भेजा है वह उनसे कभी पकड़ में नहीं आएगा | ये पकड़ने जाने वाले मारे जायेंगे | ये पक्की बात है हजरत इसे गाँठ बांधलें |"
अकबर बोला- "पृथ्वीराज ! हम तुम्हारे भाई को जरुर पकड़कर दिखायेंगे |"
पृथ्वीराज ने फिर कहा- "जहाँपनाह ! वो मेरा भाई है उसे मैं अच्छी तरह से जानता हूँ वो हरगिज पकड़ में नहीं आएगा और पकड़ने वालों को मारेगा भी |

पृथ्वीराज के साथ इस तरह की बातचीत होने के बाद अकबर ने मीरहम्जा को तीन हजार घुड़सवारों के साथ आरबखां की मदद के लिए रवाना कर दिया | उधर पृथ्वीराजजी ने अपने भाई अमरसिंह को पत्र लिख भेजा कि- " भाई अमरसिंह ! मेरे और बादशाह के बीच वाद विवाद हो गया है | तेरे ऊपर बादशाह के सिपहसलार फ़ौज लेकर चढ़ने आ रहे है तुम इनको पकड़ना मत,इन्हें मार देना | और तूं तो जिन्दा कभी पकड़ने में आएगा नहीं ये मुझे भरोसा है | भाई मेरी बात रखना |"
ये वही पृथ्वीराज थे जो अकबर के खास प्रिय थे और जिन्होंने राणा प्रताप को अपने प्रण पर दृढ रहने हेतु दोहे लिखकर भेजे थे जिन्हें पढने के बाद महाराणा प्रताप ने अकबर के आगे कभी न झुकने का प्रण किया था | पृथ्वीराज जी का पत्र मिलते ही अमरसिंह ने अपने साथी २००० घुड़सवार राजपूत योद्धाओं को वह पत्र पढ़कर सुनाया,पत्र सुनने के बाद सभी ने अपनी मूंछों पर ताव देते हुए मरने मारने की कसम खाई कि- " मरेंगे या मरेंगे |"

अमरसिंह को अम्ल (अफीम) का नशा करने की आदत थी | नशा कर वे जब सो जाते थे तो उन्हें जगाने की किसी की हिम्मत नहीं होती थी कारण नशे में जगाने पर वे बिना देखे,सुने सीधे जगाने वाले के सिर पर तलवार की ठोक देते थे | उस दिन अमरसिंह अफीम के नशे में सो रहे थे कि अचानक आरबखां ने अपनी सेनासहित "हारणी खेड़ा" नामक गांव जिसमे अमरसिंह रहता था को घेर लिया पर अमरसिंह तो सो रहे थे उन्हें जगाने की किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी ,कौन अपना सिर गंवाना चाहता | आखिर वहां रहने वाली एक चारण कन्या "पद्मा" जिसे अमरसिंह ने धर्म बहन बना रखा था ने अमरसिंह को जगाने का निर्णय लिया | पद्मा बहुत अच्छी कवियत्री थी | उसने अमरसिंह को संबोधित कर एक ऐसी वीर रस की कविता सुनाई जो कविता क्या कोई मन्त्र था,प्रेरणा का पुंज था,युद्ध का न्योता था | उसकी कविता का एक एक अक्षर एसा कि कायर भी सुन ले तो तलवार उठाकर युद्ध भूमि में चला जाए | कोई मृत योद्धा सुनले तो उठकर तलवार बजाने लग जाये |

पद्मा की कविता के बोलों ने अमरसिंह को नशे से उठा दिया | वे बोले - "बहन पद्मा ! क्या बादशाह की फ़ौज आ गयी है ?"
अमरसिंह तुरंत उठे ,शस्त्र संभाले,अपने सभी राजपूतों को अम्ल की मनुहार की | और घोड़े पर अपने साथियों सहित आरबखां पर टूट पड़े | उन्होंने देखा आरबखां धनुष लिए हाथी पर बैठा है और दुसरे ही क्षण उन्होंने अपना घोडा आरबखां के हाथी पर कूदा दिया , अमरसिंह के घोड़े के अगले दोनों पैर हाथी के दांतों पर थे अमरसिंह ने एक हाथ से तुरंत हाथी का होदा पकड़ा और दुसरे हाथ से आरबखां पर वार करने के उछला ही था कि पीछे से किसी मुग़ल सैनिक में अमरसिंह की कमर पर तलवार का एक जोरदार वार किया और उनकी कमर कट गयी पर धड़ उछल चूका था , अमरसिंह का कमर से निचे का धड़ उनके घोड़े पर रह गया और ऊपर का धड़ उछलकर सीधे आरबखां के हाथी के होदे में कूदता हुआ पहुंचा और एक ही झटके में आरबखां की गर्दन उड़ गयी |
पक्ष विपक्ष के लोगों ने देखा अमरसिंह का आधा धड़ घोड़े पर सवार है और आधा धड़ हाथी के होदे में पड़ा है और सबके मुंह से वाह वाह निकल पड़ा |
एक सन्देशवाहक ने जाकर बादशाह अकबर को सन्देश दिया -" जहाँपनाह ! अमरसिंह मारा गया और बादशाह सलामत की फ़ौज विजयी हुई |"
अकबर ने पृथ्वीराज की और देखते हुए कहा- " अमरसिंह को श्रधांजलि दो|"
पृथ्वीराज ने कहा - " अभी श्रधांजलि नहीं दूंगा, ये खबर पूरी नहीं है झूंठी है |"
तभी के दूसरा संदेशवाहक अकबर के दरबार में पहुंचा और उसने पूरा घटनाकर्म सुनाते हुए बताया कि- "कैसे अमरसिंह के शरीर के दो टुकड़े होने के बाद भी उसकी धड़ ने उछलकर आरबखां का वध कर दिया |"
अकबर चूँकि गुणग्राही था ,अमरसिंह की वीरता भरी मौत कीई कहानी सुनकर विचलित हुआ और बोल पड़ा - "अमरसिंह उड़ता शेर था ,पृथ्वीराज ! भाई पर तुझे जैसा गुमान था वह ठीक वैसा ही था ,अमरसिंह वाकई सच्चा वीर राजपूत था | काश वह हमसे रूठता नहीं |"
अमरसिंह की मौत पर पद्मा ने उनकी याद और वीरता पर दोहे बनाये -

आरब मारयो अमरसी,बड़ हत्थे वरियाम,
हठ कर खेड़े हांरणी,कमधज आयो काम |
कमर कटे उड़कै कमध, भमर हूएली भार,
आरब हण हौदे अमर, समर बजाई सार ||

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