शुक्रवार, 6 मार्च 2015

वीर भूमि मेवाड़

यह वीर प्रस्विनी वीर भूमि क्षत्रियो की सरजमी है,
पद्मिनी,हाडा रानी की,यह प्यारी मातृभूमि है,

प्रताप की कर्मभूमि,गोरा बादल का प्यारा वतन है,
शूरवीर महाराणा सांगा,सिंह रतन सैम हुआ रतन है,

मिटटी के कण-कण में यहाँ,वीरो की हुई रवानी है,
यह पुण्य दिव्यभूमि,वीरता की अमर निशानी है,

जहाँ स्वाभिमान पे चली कटारे,नित्य डंकाए बजती थी,
जौहर व्रत का हवन करने को,नितदिन चिताये सजती थी,

पवन के झोको में अब भी,लाशों की दुर्गन्ध आती है,
निर्मल समीर क्षत्रियो की,वीरता सन्देश सुनाती है,

जहाँ की सुकोमल सुंदरियां,विहंसते जल मरी चिता में,
कभी न लगने दी कालिमा,क्षत्रनियो ने नीज पवित्रता मे,

जहाँ वीरता नस-नस में भरी थी,बाल,वृद्ध व तरुणों में,
काटकर शीश धर देते थे,भारत माँ के चरणों में,

जहाँ युगों युगों तक क्षत्रियो ने,कीर्ति पताका फहराई,
जिनके वीर रगों में शौर्य,व् शूरवीरता समाई,

शरणागतो के रक्षार्थ,चल पड़ते दहकते अंगारों पर,
अप्रतिम वीरता प्रदर्शित कर,लुट गए तीर तलवारो पर,

चलते सर पे कफ़न बांधकर,आजादी के परवाने थे,
चित्तोड़ उनका प्यारा था,वे मातृभूमि के दिवाने थे,

झाला ने किया त्याग यहाँ,पद्मिनी ने दिखाया जौहर को,
रानी हाडा ने शीश काट,थमा दिया अपने श्योहर को,

वीर हम्मीर,कुम्भा,चुंडा,जयमल ने अर्पण प्राण किया,
मुंजा,पत्ता,कल्ला,प्रताप ने अपना सबकुछ कुर्बान किया,

वीरो ने पूजा अर्चना की,अपने शीश व खुनो से,
माता की गोदे भर दी,शत्रुओ के शीश प्रसूनो से,

धन्य है वह धरती जिसने,जौहर में जलना सिखलाया,
जलते हुए अंगारों पर भी विहंसते चलना सिखलाया,

भारत की वह दिव्यभूमि,आज बना हमारा सम्बल है,
वीर बालक बादल के बलिदान से वह नित्य उज्वल है,

जय मेवाड़,जय हो चित्तोड़,सदा तुम्हारी जय-जय हो,
तेरी प्रेरणा दिव्य ज्योति से,भारत की सदा विजय हो।।

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