राजस्थान के राजाओं मे अंग्रेजों से सहायक सन्धि के बाद भी बहुत सारे जागीरदार अंग्रेजों के विरोधी थे ।
बिसाऊ के ठाकुर श्याम सिंह जी ने वि सं 1868 मे अंग्रेजों के खिलाफ रणजीत सिंह पंजाब कि सहायता मे अपनी सेना भेजी थी ।
इसी समय ज्ञान सिंह जी मण्डावा ने भी रणजीत सिंह पंजाब कि सहायता मे सेना भेजी थी ।।
बहल पर शेखावतो का अधिकार था ।
इसके बाद जब बहल पर अंग्रेजों का अधिकार हुआ । तो श्याम सिंह जी ने अंग्रेज शासित कई गाँवों पर अधिकार कर लिया ।
अंग्रेजों ने उनकी शिकायत जयपुर महाराज से कि पर जयपुर महाराज ने बङी चालाकी से असमर्थता व्यक्त कर दि ।
जब अंग्रेजों रेजीडेण्ड ने सेना कि शक्ति से श्याम सिंह जी को दबाना चाहा तो जयपुर महाराज ने बीच बचाव कर मामला शांत करवाया ।
बहल पर सल्हेदी सिंह (भोजराज जी के शेखावत ) के वंशजो का अधिकार था ।
अमर सिंह के बाद कान सिंह का शासन था, बहल पर अपना अधिकार बनाये रखने के लिए अंग्रेजों से इनका युद्ध हुआ ।
कान सिंह कि सहायता मे ददरेवा चुरु के सूरजमल राठौड़ ने अपनी सेना भेजी । पर अंग्रेजों का बहल पर अधिकार हो गया ।
कान सिंह के बाद उनके भाई सम्पत सिंह ने बहल पर अधिकार करने के लिए अंग्रेज सेना से युद्ध किया ।
सुना जाता है इस युद्ध मे 3000 भोजराज जी के शेखावत थे ।
इन तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है राजपुत अंग्रेजी शासन का विरोध शुरुआत से हि करते रहे थे ।
इसके बाद जब सितम्बर 1857 मे क्रांति हुई तो आउआ आसोप व राजस्थान भर के राजपुत क्रांतिकारी दिल्ली कि तरफ अंग्रेजी सेना से मुकाबला करने बढे तो इन्हीं सल्हेदी सिंह के शेखावतो ने उनका सहयोग किया ।
जौधपुर के राजा मान सिंह अंग्रेजों के विरोधी थे ।
जब इन्दौर के होल्कर और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ । और होल्कर पराजित हुए तो होल्कर को जौधपुर महाराज मान सिंह ने शरण दि थी ।
नागपुर का भौसला मधुराजदेव जब अंग्रेजों से पराजित हुआ तो वह रणजीत सिंह पंजाब कि शरण मे गया । रणजीत सिंह ने आनाकानी कि तो भौसला राजा मान सिंह कि शरण मे आकर रहा ।
लार्ड विलियम बेटिंग ने 1831 मे जब राजाओं का दरबार लगाया तो राजा मान सिंह जौधपुर उपस्थित नही हुए ।
और ना राजाओं के साथ हुई सन्धि का अनुमोदन किया, तथा अंग्रेजी सरकार को खिराज भी नही दिया । समकालीन कवि करणीदान बारहठ ने मान सिंह के इन कार्यों कि प्रशंसा कि है ।
शेखावाटी मे 1833-34 के लगभग फोरेस्टर के नैतृत्व मे शेखावाटी ब्रिगेड उन ठाकुरो के दुर्ग आदि तोड़ने मे लगी थी जो अंग्रेज विरोधी थे ।
शेखावाटी ब्रिगेड और शेखावतो कि हमेशा झङपे हुआ करती रोज आमना-सामना हो जाता ।
इसी दौरान क्रांतिकारी धीर सिंह शेखावत गुङा अंग्रेजों से लङते हुए विरगती को प्राप्त हुए ।फोरेस्टर ने उनका सिर मंगवाकर लटका दिया ।
तब एक युवक ने रात्रि को साहस के साथ प्रवेश कर धीर सिंह जी का सिर ले आया ।
लार्ड बेटिंग ने सांभर झील और आसपास के क्षैत्र पर जबरदस्ती अधिकार कर लिया । इससे जयपुर नरेश राम सिंह और सरदारों मे आक्रोश फैल गया, उन्होंने 4 जून 1835 के दिन अंग्रेजी रेजीमेन्ट पर आक्रमण कर उनके सहायक ब्लेक को मौत के घाट उतार दिया ।
बिकानेर के राजा रतन सिंह जी जवाहर जी को और जौधपुर राजा तख्त सिंह जी ने डुंगजी को शरण दि थी । तब अंग्रेजों ने इन पर दबाव बनाया पर इन राजाओं के बीच बचाव के कारण उन्हें कभी अंग्रेजों कि जेल नही देखनी पङी ।
अन्त मे फैसला हुआ कि डूंगजी जौधपुर ही रहेंगे और जवाहर जी बिकानेर रहे बाद मे वो अपने गाँव पाटोदा आ गये थे ।।
सूरजमल राठौड़ ददरेवा चुरु
ये डूंगजी जवाहर जी के समकालीन थे । ये अंग्रेजों के खिलाफ हिसार और आस-पास के क्षैत्र मे गतिविधियां चलाते थे ।
इन्होंने जब अंग्रेजों और बहल के कान सिंह का युद्ध हुआ तो कान सिंह के पक्ष मे सेना भेजी थी ।
1857 कि क्रांति मे कुशाल सिंह राठौड़ आउवा के परम सहयोगी थे आसोप ठाकुर शिवनाथ सिंह जी इनकी सेना ने आउवा के युद्ध मे अंग्रेजी तोपखाने पर अधिकार कर लिया था । अंग्रेजी सेना भाग खङी हुई और उनके 2000 अंग्रेजी सैनिक मौत के घाट उतार दिये गये । और ब्रिगेडियर जनरल लारेन्स भागकर अजमेर चला गया ।
1857 के समर में आलणियावास के ठा, किशनसिंह और मण्डावा ठा, आनन्द सिंह शेखावत भी थे, कुशाल सिंह राठौड़ जब मेवाड़ चले गये तो कई क्रांतिकारियों के साथ बिशन सिंह जी आउवा मण्डावा के ठा आनन्द सिंह के पास आ गये । आलणियावास के अजीतसिंह आनन्द सिंह के श्वसुर थे ।
क्रांतिकारी यहाँ से मण्डावा ठाकुर कि सहायता लेकर दिल्ली कि और बढे । नारनोल के पास अंग्रेजी सेना ने इनका मुकाबला किया । वहां उनकी पराजय हुई ।
शेखावाटी के सल्हेदी सिंह के शेखावतो और बीदावाटी के बीदावतो ने इन क्रान्तिकारियों कि सहायता कि थी ।
सल्हेदी सिंह के भोजराज जी के शेखावतो का और अंग्रेजों बैर बहल के युद्धों के समय से ही चला आ रहा था ।
कुछ समय पुर्व जयपहाङी के मेजर यासिन खां के संग्रह पत्रो से मिली जानकारी के अनुसार सितम्बर 1857 में दिल्ली मे हुवे संग्राम मे डूडलोद ठाकुर जयसिंह जी के कामदार नागङ पठान फजल अलीखान भी लङ रहे थे ।
इन पत्रो से जानकारी मिलती है कि बहादुरशाह जफर व उनके शहजादो का जयसिंह जी से अच्छे सम्बन्ध थे । और जयसिंह जी क्रान्तिकारियों कि सहायता करते थे ।
वायसराय लाड कजन ने फरवरी 1903 मे दिल्ली दरबार आयोजित किया, उस समय मलसीसर हाउस जयपुर मे केशरी सिंह बारहठ, भूर सिंह मलसिसर और ठाकुर करणी सिंह जी ने विचार-विमर्श किया कि कुछ ऐसा कीया जाये कि उदयपुर महाराणा फतह सिंह जी दरबार मे शामिल ना हो ।
और इस कार्य को करने का दायित्व केशरी सिंह बारहठ को सौंपा गया ।
उन्होंने "चेतावनी रा चूगटया" नामक सोरठे लिखकर फतह सिंह जी के पास भीजवाया । उन्हें पढ़कर महाराणा इतने प्रभावित हुवे कि वह दिल्ली गये पर दरबार मे उपस्थित नही हुवे ।और अंग्रेज चाहते हुवे भी कुछ ना कर सके ।
अथार्थ 1857 के बाद भी राजपुत अंग्रेजी सरकार के विरोध मे शामिल थे ।
गांधी ने जब जज नमक कानून भंग करने के लिए सन् 1930 मे दाण्डी यात्रा कि ।
साबरमती से 12 मार्च 1930 को रवाना होकर 5 अप्रैल 1930 को दाण्डी पहुची ।
अंग्रेजों के भय से बहुत से सहयोगी रास्ते मे ही बिखर गये थे ।
दाण्डी पहुंचने वालो मे खिरोङ (शेखावटी) के मास्टर सुल्तान सिंह शेखावत भी एक थे ।
मास्टर साहब ने गांधीजी का पुरा सहयोग किया इस यात्रा मे ।
GREAT WARRIORS FREEDOM FIGHTER OF INDIA RAJASTHAN GUJARAT HARYANA UP RAJPUT RANA PRATAP BHAGAT SINGH RANI LAXMI BAI SANGA WIKIPEDIA
गुरुवार, 5 मार्च 2015
अंग्रेजों के विरोधी राजपुत !
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