शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

ब्रिटिश सरकार की ट्रेन पर कब्जा करने बाले महाराणा फतेहसिंह जी की अनसुना किस्सा



ब्रिटिश सरकार की ट्रेन पर कब्जा करने बाले महाराणा फतेहसिंह जी की अनसुना किस्सा

1857 की क्रांति का इतिहास या तो मिटाया गया या तो बदल दिया गया। वीर सावरकर की लिखी गई पुस्तके 1857 के वीरसवरी भी अंग्रेजों द्वारा जब्त कर ली गई प्रतिबन्धित कर दी गई थी। भगतसिंह आदि लोगो ने चोरिछुपे उन पुस्तको को छपबाया था। ऐसी ही एक इतिहास की घटना आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हु जो इतिहास कारकों द्वारा छुपाई गई। मेवाड़ के महाराजाओ के बारे में सारे संसार मे प्रसिद्ध है उनकी वीरता ओर बुद्धिमता। आज से करीब 150 वर्ष पहले बहा के साशक महाराणा फतेहसिंह जी हुए। उनके बारे में कहा जाता है कि बे बड़े न्याय प्रिय, बहादुर ओर बुद्धिमान थे। अन्याय कही भी हो बे सहन नही करते थे। उनके साशन काल मे उन्होंने उदयपुर के घंटाघर में एक जूता टांग रखा था अगर कोई अपराधी अपराध करता तो उसे बही जूता मारा जाता था। इस तरह का दंड बहुत हो जाया करता था उस समय की जनता के लिए, क्योंकि उस समय की जनता बड़ी भोली ओर स्वाभिमानी हुआ करती थी अगर किसी को इतना ही जूता पड़ जाता और उसका सम्मान छिन जाता तो बह जीवन में कभी कोई अपराध नही करता था। फिर भी अगर कोई संगीन अपराध किया करता तो उसे मृत्यु दंड दिया जाता था।

मई 1910 में अंग्रेजो ने उदयपुर से चित्तौड़गढ़ के बीच ट्रेन चलबाई जिसका नाम था “BB&CI” ईस रुट के बीच मे एक भूपालसागर नामक तालाब आता है जो कि काफी बड़ा तालाब है ये तालाब फतेहसिंह जी के साशन में ही आता था। एक बार तालाब का तट टूट गया और मिट्टी के कटाव के कारण ट्रेन की सभी लाइने भी टूट गई। अब अंग्रेजी सरकार ने दिल्ली से महाराज फतेहसिंह जी को पत्र भिजवाया की “आपका भूपालसागर टूट जाने के कारण हमारी ट्रेन लाइन टूट गई है जिस कारण हमें 16लाख रुपये का नुकसान हुआ है आप जल्द से जल्द ब्रिटिश सरकार को रुपये देने का बंदोबस्त करे”।
अपनी बुद्धि और वीरता का परिचय देते हुए महाराज ने अपने पेशकार को बुलाया और अंग्रेज सरकार का पत्र फाड़कर अपना पत्र लिखबाया की “आपकी ट्रेन तो बाद में आई है पहले हमारा भूपालसागर बना था। आपकी ट्रेन की गड़गड़ाहट और ट्रेन के भार की वजह से हमारा भूपालसागर टूट गया है जिसके टूटने की वजह से हमारे किसानों की फसले वर्बाद हो गई ओर इसका नुकसान हमने 32लाख रुपये आंका है अंग्रेजी सरकार जितनी जल्दी हो सके रुपये की भरपाई हमारे किसानों को करे। जब तक 32लाख रुपये नही मिलते तबतक आपकी ट्रेन मेरे कब्जे में रहेगी”।
जब ये पत्र ब्रिटिश सरकार को मिला तो सभी के सभी हैरान हो गए ब्रिटिश हुकूमत में हड़कंप मच गया की अब किया क्या जाए, कैसे इस पत्र का कटाक्ष किया जाए। अंग्रेजों ने महाराज के खिलाफ बहुत सडयंत्र रचे बहुत दुष्प्रचार किये पर वे सफल न हुए। आखिरकार थक हार कर ब्रिटिश सरकार को सभी किसानों को रुपये देने ही पड़े। तब कही जाकर मेवाड़ के साशक फतेहसिंह जी ने ब्रिटिश सरकार की ट्रेन उन्हें बापिस लौटाई।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें