गुरुवार, 27 अगस्त 2020

पाबूजी राठौड़

गौ रक्षक पाबूजी राठौड़



सम्पूर्ण राजस्थान में विवाह के वक़्त दूल्हे दुल्हन के मात्र 4 फेरे लेने की प्रथा सदियों से है .... जबकि बाकी देश मे ये रस्म 7 फेरों की होती है ....

अमरकोट (तात्कालीन गुजरात वर्तमान पाकिस्तान) रियासत के सोढा राजपूतों से एक दिन पाबूजी राठौड़ के साये का नारियल आता है .... (विवाह का रिश्ता) ....

तय निश्चित तिथि को पाबूजी अपने सगे सम्बन्धियों मित्रों परिवारजनों के साथ अपनी बारात धूमधाम से अमरकोट ले के जाते हैं .... किन्तु उनका नाराज़ बहनोई जिनराव विवाह में शामिल नहीं होता ....

जिनराव एक योजना बनाता है .... अपने भाइयों और कुटुंब के साथ मिल के अपने बड़े साले बुढोजी पे आक्रमण की .... बुढोजी छोटे भाई पाबूजी की बारात में ना जाकर अपने रावळे मे ही रुकते हैं ....

जिनराव अपने भाइयों और सेना के साथ पाबूजी के गांव की और प्रस्थान करता है एवं वहां पहुंचकर सीमा पे अपनी सेना का पड़ाव डालता है .... योजना बनती है कि जिनराव पहले अकेला जा के अपने बड़े साले बुढोजी को युद्ध के लिए ललकरेगा और घोड़ी कालवी देने की मांग करेगा ....

जिनराव अपने ससुराल पहुंचकर अपने बड़े साले बुढोजी से झगड़ा करता है और उनको युद्ध के लिए ललकारता है .... बुढोजी की पत्नी छत के मालिये (कमरे) से घर के आंगन में ये नज़ारा देख रही होती है .... क्षत्राणी छत से नीचे आती है और कटार निकाल के अपने ननदोई जिनराव को युद्ध के लिए ललकारती है .... बोलती है मेरे पति को एक शब्द कहा तो कटार सीने में उतार दूंगी ....

क्षत्राणी का रौद्र रूप देख के जिनराव वहां से उल्टे पांव भग खड़ा होता है ....

जिनराव अपने डेरे में आकर अपने भाइयों को पूरी बात बताता है .... जिनराव के भाई कहते हैं अब हम खाली हाथ जायल (नागौर) लौटे तो हमारी बेइज्जती होगी क्यों न हम कुछ ऐसा जतन कर के जायें की पाबूजी खुद अपनी घोड़ी कालवी को हमारे पास छोड़ के जाये ....

योजना बनती है .... रात को जिनराव अपनी सेना और भाइयों के साथ देवल बाईसा की गौशाला पे हमला करता है .... गौशाला में देवल बाईसा का पति और उनके 24 भाई होते हैं .... भीष्ण रण में जिनराव देवल बाईसा के पति और उनके 24 भाइयों को मार के सब गौ माता को लूट के अपने साथ ले जाता है ....

तड़के जल्दी देवल बाईसा दुहारी करने अपनी गौशाला आती है तो वहां का नज़ारा देख के विस्मित हो जाती है .... अपने पति की और कुटुंब की लाशें देख के देवल बाईसा रोते रोते बेहाल हो जाती है ....

देवल बाईसा पाबूजी के रावळे जा के रोते हुए मदद की गुहार लगाती है .... अंदर से पाबूजी के बड़े भाई राव बुढोजी आते हैं और देवल बाईसा को रोते-बिलखते देख के कहते हैं .... हे बाईसा क्या हुआ ?? .... इतनी भोर में आप इस हालत में मेरे द्वारे क्यों ?? ....

देवल बाईसा बुढोजी को पूरी बात बताते हुए कहती है .... भाईसा मेरा भाई पाबू कहाँ है ?? .... उसने मुझे मेरी रक्षा का वचन दिया था ....

बुढोजी कहते हैं .... बाईसा पाबू तो अपनी जान (बारात) ले कर अमरकोट परणीजने (ब्याहने) गया है अब बारात तो वापस एक दो महीने बाद आयेगी ....

शक्ति अवतार देवल बाईसा सुगन चिड़ी (सोन चिड़ियां) का रूप धर के उड़ते हुए अमरकोट जाती है ....

अमरकोट के गढ़ में उस वक़्त पाबूजी चँवरी (लग्न मंडप) में फेरे ले रहे होते हैं .... 

देवल बाईसा सुगन चिड़ी का रूप धरे अमरकोट गढ़ की मुंडेर पे बैठ के ज़ोर ज़ोर से रोने लगती है .... चिड़ी रूप धरे देवल बाईसा का क्रुन्दन जब घोड़ी कालवी के कानों में पड़ता है तो कालवी ज़ोर ज़ोर से चिंघाड़ते हुए कूदने लगती है ....

पाबूजी के 2 अभिन्न मित्र चांदोजी राठौड़ और डेमोजी राठौड़ भी उस वक़्त मंडप में मौजूद रहते हैं .... पाबूजी का साला चांदोजी से जा के कहता है आपकी घोड़ी कालवी को क्या हुआ ज़ोर ज़ोर से उछल क्यों रही है ?? ....

चांदोजी और अपने साले का संवाद फेरे लेते पाबूजी के कानों में पड़ता है और देवल बाईसा की कूक भी सुनाई देती है .... पाबूजी उस वक़्त 3 फेरे ले चुके होते हैं और चौथे फेरे के लिए पांव आगे बढ़ाते हैं ....

लेकिन अपनी बहन देवल बाईसा पे संकट देख के पाबूजी चौथा फेरा पूरा नहीं लेते .... अपनी तलवार से वो गठजोड़ा (दुल्हन की चुनड़ी और दूल्हे के साफे का बंधन) तोड़ के अपनी घोड़ी कालवी की पीठ पे सवार हो जाते हैं .... (सम्पूर्ण राजस्थान में तब से ही विवाह के वक़्त सिर्फ 4 फेरे लेने की प्रथा है) ....

पाबूजी के साले साली ससुराल पक्ष के लोग उनके पांव पकड़ लेते हैं और कहते हैं .... पावणा (दामाद/जंवाई/कुंवर साब) आप शादी बीच मे छोड़ के कहाँ और क्यों जा रहे हो ?? .... क्या हमारी मनुहार खातिरदारी दान दहेज में कोई कमी रह गयी ?? .... या हमारी बाई (बहन/बेटी/कन्या) में कोई कमी है ?? .... हम तो आपको बिना फेरे पूरे किए जाने नहीं देंगे ....

पाबूजी कहते हैं मेरी धर्म की बहन देवल बाईसा संकट में है मुझे जाना ही होगा मैंने बाईसा को रक्षा का वचन दे रखा है .... मैं ज़िंदा रहा तो शादी फिर हो जाएगी वापस आ के फेरे ले लूंगा आपकी बाई से ....

पाबूजी जी फेरे शादी बीच मे छोड़ के घर लौटते हैं और अपने बहनोई जिनराव को सबक सिखाने की ठानते हैं .... तभी उनकी मां कमला दे उनसे कहती है देख पाबू वो तेरी बहन का सुहाग है तू कुछ ऐसा काम मत करना जिससे तेरी बहन के सुहाग पे आंच आये ....

पाबूजी मां को कहते हैं ठीक है लेकिन मैं उसे सबक जरूर सिखाऊंगा .... मां को वचन दे कर पाबूजी रणभूमि में निकलते हैं ....

एक तरफ जायल (नागौर) के जिनराव की सेना और कुटुंब दूजी तरफ पाबूजी और साथ मे उनके दो अभिन्न मित्र चांदोजी और डेमोजी .... युद्ध शुरू होता है और देखते देखते पाबूजी रणभूमि में त्राहिमाम मचा देते हैं .... चारों तरफ खून की नदी बहने लगती है लाशों के अंबार लगता है .... अंत मे नंबर आता है जिनराव का ....

जिनराव सामने मृत्यु देख के अपने साले पाबूजी जी जान की भीख मांगता है ....

पाबूजी बहनोई जिनराव को माफ कर के जैसे ही पीछे मुड़ते हैं घायल जिनराव एक तलवार लपक के तलवार का भरपूर वार पाबूजी की गर्दन पर करता है .... पाबूजी वहीं शहीद हो जाते हैं धड़ और गर्दन अलग अलग हो जाती है ....

पाबूजी के रावळे में जब खबर पहुंचती है कि अपनी बहन देवल को दिए वचन की खातिर गौ रक्षा करते हुए पाबूजी शहीद हो गए तो उनके बड़े भाई राव बुढोजी रणभूमि की और बढ़ते हैं .... राव बुढोजी भी युद्ध में बहनोई जिनराव के हाथों शहीद हो जाते हैं ....

बुढोजी की पत्नी उस वक़्त 9 माह की गर्भवती रहती है .... अपने पति की मौत की खबर सुनकर क्षत्राणी अपनी कटार निकाल के अपना पेट चिर के अपने गर्भस्थ शिशु को गर्भ से बाहर निकाल के अपनी सास कमला दे को सौंपती है .... इसके बाद क्षत्राणी अपने पति के साथ अग्नि में चूड़े चुनड़े सहित अमर (सती) हो जाती है ....

राजकोट रियासत में जब खबर पहुंचती है कि उनके कुंवर साब (दामाद) पाबूजी गौ रक्षा और अपने वचन की खातिर युद्ध में शहीद हो गए हैं तो पाबूजी की 4 फेरों की ब्याहता पत्नी सुप्रिया कुंवर मारवाड़ आती है और अपने सुहाग पाबूजी जी के साथ चीता में अमर हो जाती है ....

पाबूजी जी के भाभीसा यानी बड़े भाई बुढोजी की पत्नी ने सती होने से पूर्व अपना पेट चिर के जिस बेटे को जन्म दिया था उस बेटे का नाम रखा गया .... झरड़ो जी ....

झरड़ो जी ने बड़े हो कर जिनराव से अपने पिता राव बुढोजी और अपने काकोसा पाबूजी जी की मौत का बदला लिया ....

उसके बाद कालांतर में आगे चलकर झरड़ो जी नाथ सम्प्रदाय में दीक्षित हो गये और उनका नाम बदलकर रुपनाथ जी हो गया .... रुपनाथ जी के रूप में वो आज भी राजस्थान के ख्याति प्राप्त सिद्ध पुरुष और लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं .... रुपनाथ जी के राजस्थान में अनेक मंदिर देवरे बने हुए हैं ....

पाबूजी राठौड़ 800 वर्षों से राठौड़ कुल के कुल देवता हैं .... और राजस्थान के प्रमुख लोक देवता है .... पाबूजी के मंदिर देवरे राजस्थान के प्रत्येक शहर कस्बे गांव ढाणी ढाणी में है .... पाबूजी राजस्थान के घर घर में पूजे जाते हैं ....

ऊंटों के बीमार होने पर या ऊंट कल्याण के लिए पाबूजी राठौड़ की मन्नत मांगी जाती है .... प्लेग आदि रोगों के लिए भी पाबूजी की मन्नत मांगी जाती है या उनके मन्दिर में धोक दी जाती है .... लोगों को फायदा होता है ....

पाबूजी ने गौ रक्षा और अपने वचन की खातिर चौथे फेरे के बीच मे ही चँवरी (लग्न मंडप) छोड़ी थी .... तब से 800 वर्षों से सम्पूर्ण राजस्थान में शादी में दूल्हे दुल्हन के 4 फेरों की ही प्रथा है .... 3 फेरों में दुल्हन आगे 1 फेरे में दूल्हा आगे ....

पाबूजी को लक्ष्मण अवतारी माना जाता है ....

आदिवासी जनजाति भोपों द्वारा पाबूजी की फड़ (कथा) बड़ी शानदार बाँची जाती है ....

कोलूमढ रे धणियों ने घणी खम्मा

पाबूजी महाराज की जय !!!! ....
साभारः
अशोक पालीवाल

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