भगवान परशुराम
परशुराम जयंती आते ही जातिवादी तत्व व हिन्दू विरोधी वामपंथी तत्व क्षत्रिय और ब्राह्मण समाज में वैमनस्य का निर्माण करने हेतु दुष्प्रचार करते है कि परशुराम जी ने 21 बार क्षत्रियो का सँहार किया जो पूर्णतया असत्य है...वास्तविकता से आपको परिचित कराते है।
√1- भगवान परशुराम जी की शत्रुता सिर्फ महिष्मती के हैहय वंशी सहस्त्र अर्जुन से थी जो एक अत्याचारी और अहंकारी राजा था जिसके पुत्रो ने परशुराम जी के पिता का वध किया था। परशुराम जी ने हैहय वंश के क्षत्रियो का 21 बार विनाश किया था न कि सभी क्षत्रियो का।
√2-ये घटना भगवान राम के अवतरण से पूर्व की है यदि उनसे पूर्व ही क्षत्रिय समाप्त हो गये होते तो अयोध्या का सुर्यवंश जिसमें महाराजा दशरथ, प्रभु श्री राम, लक्ष्मण और मिथिला के महाराजा जनक जैसे दुसरे क्षत्रिय वंश कैसे बचे रहे? जबकि जब भगवान शिव का धनुष टूटा था तो वहां परशुराम जी के आगमन व उनके लक्ष्मण जी से वाद-विवाद की घटना कैसे घटित होती?
√3-उसके बाद महाभारत काल में भी परशुराम जी का भीष्म और कर्ण को युद्ध की शिक्षा देने का वर्णन आता है। यदि पूर्व में ही सभी क्षत्रिय समाप्त हो गये होते तो महाभारत काल में जो अनेक क्षत्रिय वंश थे वो कहाँ से आ गये?
√4-उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि भगवान परशुराम द्वारा क्षत्रियो के पूर्ण विनाश की कथा ब्राह्मणों और क्षत्रियो में वैमनस्यता पैदा करने के लिए कपोल कल्पित रूप से हिन्दू विरोधी तत्वों द्वारा गढी गयी है जो पूर्ण रूप से असत्य है।
√5-परशुराम जी की शत्रुता जिस हैहय वंश से थी उसका भी पूर्ण विनाश नही हुआ था बल्कि सह्स्त्रजुन के पुत्र को महिष्मती के सिंहासन पर विराजित किया गया था। आज भी हैहय वंश के क्षत्रिय बलिया जिले में मिलते हैं। हैहय वंश की शाखा कलचुरी राजपूत है जो आज भी छतीसगढ़ और मध्य प्रदेश में मिलते हैं
*प्रभु श्री राम भगवान परशुराम संवाद।*🚩
हे रघुकुल रूपी कमल वन के सूर्य!
हे राक्षसों के कुल रूपी घने जंगल को जलाने वाले अग्नि!
आपकी जय हो!
हे देवता, ब्राह्मण और गो का हित करने वाले!
आपकी जय हो।
हे मद, मोह, क्रोध और भ्रम को हरने वाले! आपकी जय हो॥॥
मैं एक मुख से आपकी क्या प्रशंसा करूँ? हे महादेवजी के मन रूपी मानसरोवर के हंस!
आपकी जय हो।
मैंने अनजाने में आपको बहुत से अनुचित वचन कहे।
हे क्षमा के मंदिर दोनों भाई! मुझे क्षमा कीजिए॥॥
हे रघुकुल के पताका स्वरूप श्री रामचन्द्रजी!
आपकी जय हो, जय हो, जय हो।
ऐसा कहकर परशुराम जी तप के लिए वन को चले गए।
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