मंगलवार, 30 अगस्त 2022

राव जैता



जोधपुर राज्य के इतिहास में  राव कुंपा और उनके चचेरे भाई राव जैता  का नाम प्रसिद्ध  है । अपनी वीरता, शौर्य और  राष्ट्रभक्ति के लिए, उनका नाम भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा है |
राव कुंपा जोधपुर के महाराजा राव जोधा के भाई  राव अखैराज के पौत्र व राव मेहराज के पुत्र थे इनका जन्म वि.सं. 1559 कृष्ण द्वादशी माह को राडावास धनेरी (सोजत) गांव में मेहराज जी की रानी कर्मेती भटियाणी जी के पुत्र के रूप में हुआ था |

*राव जैता जी मेहराज जी के भाई राव पंचायण जी के  पुत्र थे अपने पिता के निधन के समय राव कुंपा की आयु एक वर्ष थी,बड़े होने पर ये जोधपुर के शासक राव मालदेव की सेवा में चले गए |*
राव मालदेव अपने समय के राजस्थान के शक्तिशाली शासक थे राव कुंपा व राव जैता जेसे वीर उनके सेनापति थे,मेड़ता व अजमेर के शासक विरमदेव को पराजित करके मालदेव की आज्ञा से राव कुंपा व राव जैता ने अजमेर व मेड़ता पर अधिकार कर लिया था |
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राव कुंपा, राव जैता और राव विरमदेव:-
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अजमेर व मेड़ता छीन जाने के बाद #राव_विरमदेव ने डीडवाना पर अधिकार कर लिया किन्तु राव कुंपा व राव जैता ने राव विरमदेव को डीडवाना में फिर जा घेरा और भयंकर युद्ध के बाद डीडवाना से भी विरमदेव को अपना अधिकार छोड़ना पड़ा, राव विरमदेव भी अद्वितीय वीर योद्धा थे |
डीडवाना के युद्ध में राव विरमदेव की वीरता देख राव जैता ने कहा था कि यदि राव मालदेव व विरमदेव शत्रुता त्याग कर एक हो जाये तो हम पूरे हिन्दुस्थान पर विजय प्राप्त कर सकतें है।
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राव कुंपा, राव जैता और शेरशाह सूरी ( गिरी सुमेल युद्ध ) .
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राव कुंपा व राव जैता ने राव मालदेव की और से कई युद्धों में भाग लेकर विजय प्राप्त की।
शेर शाह सूरी के प्रपंच में फंसकर राव मालदेव के हृदय में अपने सामंतों के प्रति अविश्वाश की भावना उत्पन्न हो जाने पर वो युद्धभूमि से जाने लगे और उन्होंने राव जैता व राव कुंपा को भी आदेशित किया तब दोनों प्रखर योद्धाओं ने ये प्रतिउत्तर दिया:

उठा आंगली धरती रावजी सपूत होए*
*खाटी  थी तिण दिशा रावजी फुरमायो सू म्हे कियो*
*ने अठा आन्गली धरती रावले माइतें*
*नै म्हारे माइते भेला हुय खाटी हुती*
*आ धरती छोड ने म्है निरसण रा नहीं*
*अर्थात( वँहा तक की भूमि रावजी ने सपूत होकर  प्राप्त की थी अतः उस दिशा में आपके कहने पर हम पीछे हट गए परंतु  यँहा से आगे की  भूमि आपके और हमारे महान पूर्वजों ने  मिलकर प्राप्त की थी अतः यह पावन धरा छोड़ कर हम निकलने वाले नहीं)

अब पीछे आना संभव नहीं है
कुपां जी ने कहा :
पड़ियो  सूत पाराथ , उड़ियोज्य्ं भिमय ऊ भय
भिड़यो जुद्द भारत कदे न मुड़ीयो  कुंपसि

युद्धभूमि में वीरगति प्राप्त होने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

मरुधरा रा सिर मोड तोड़ घणा तुरका तणा
जैत झुंझार मोड कटपड़ीयो  रण  कुपसी

इस युद्ध में बादशाह की अस्सी हजार सेना के सामने राव कुंपा व राव जैता मात्र दस हजार सेनिकों के साथ थे, भयंकर युद्ध में बादशाह की सेना के चालीस हजार सैनिकों को मारकर राव कुंपा व राव जैता ने अपने दस हजार सैनिकों के साथ वीर गति प्राप्त की व मातृभूमि की रक्षार्थ   युद्ध में अपने प्राण न्योछावर करने की अपनी क्षत्रियोचित परंपरा का निर्वाह किया।
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*"अमर लोक बसियों अडर,रण चढ़ कुंपो राव ।
*सोले सो बद पक्ष में चेत पंचमी चाव ।।
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उपरोक्त युद्ध में चालीस हजार सैनिक खोने के बाद शेरशाह सूरी आगे जोधपुर पर आक्रमण करने का साहस नहीं कर सका व विचलित होकर शेरशाह ने कहा:

बोल्यो सूरी बैन यूँ , गिरी घाट घमसान
मुठी खातर बाजरी,खो देतो हिंदवान

कि मुट्ठी भर बाजरे कि खातिर मैं दिल्ली की सल्तनत खो बैठता,और इसके बाद शेरशाह सूरी ने कभी राजपूताना पर आक्रमण करने का साहस नही किया।

जोधाने माल अजेगढ़ जैतो, कुंप विकपुर राज करे।।
लाखां लोग रह ज्यां लारे, दिल्ली आगरों दोहू डरे।।

कीरत जैते कुंपरी इल आ अजै अखंड।
मरिया पग रोपे मरद, मारवाड़ नै मंड।।

उनकी प्रेरक स्थली पर प्रतिवर्ष 5 जनवरी को सुमेल गिरी बलिदान दिवस के रूप में भव्य समारोह का आयोजन किया जाता है और इन राष्ट्रनायकों को श्रद्धासुमन अर्पित किये जाते है। *हमारे ऐसे राष्ट्रवीरों के बारे में सही ही कहा गया है: भवन, महल, किले, प्रस्तर लेख आदि समय के साथ लुप्त हो जायेंगे किन्तु इन महान योद्धाओं की शौर्य गाथाएं युगों-युगों तक राष्ट्रभक्तों के हृदय में राष्ट्रभक्ति की ज्वाला का संचार करती रहेगी।

-गिरी का युद्ध ५ जनवरी, १५४४ ई. को जोधपुर-मारवाड़ के शासक राव मालदेव के सेनानायक राव जैता व राव कूँपा राठौड़ के नेतृत्व में दस हजार वीर योद्धा व अफगान शासक शेरशाह सूरी की अस्सी हजार की विशाल सेना के बीच सुमेल-गिरी स्थान पर लड़ा गया था। इस युद्ध में बोरवाड़ (मगरांचल) के शासक *नरा चौहान (नाहरसिंह)* के नेतृत्व में तीन हजार राजपूत सैनिकों के नेतृत्व में युद्ध में अद्वितीय योगदान दिया।

प्रस्तावना:
शेरशाह सूरी को "एक मुट्ठी भर बाजरे की उक्ति  के लिए विवश करने वाले मारवाड़ के रण बांकुरो के शौर्य की साक्षी रही सुमेल-गिरी रणभूमि इतिहास के पन्नों में अपने गौरव के लिए जानी जाती है। सन् १५३१ ई. में राव मालदेव राठौड़ मारवाड़ के शासक बने। वे अपने समय के सर्वाधिक शक्तिशाली शासक थे‌। उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार नागौर, मेड़ता, अजमेर, जालोर, सिवाणा, भाद्राजून, बीकानेर तक किया। मुगल शासक हुमायूं, शेरशाह सूरी से हारने के बाद इनकी सहायता लेने के उद्देश्य से १५४२ ई. में मारवाड़ आया। राव मालदेव के साम्राज्य विस्तार और हुमायूं का साथ देने से दिल्ली का अफगान शासक शेरशाह अत्यधिक चितिंत था। मारवाड़ की शक्ति को नष्ट करने की दृष्टि से शेरशाह ने १५४३ ई. में ८० हजार सैनिकों की एक विशाल सेना लेकर फतेहपुर मेड़ता होते हुए सुमेल आ पहुंचा। इधर सूचना मिलते ही राव मालदेव भी अपने सैनिकों के साथ गिरी आ पहुंचे और पीपाड़ को संचालन केंद्र बनाया। इसी समय इस क्षेत्र के नरा चौहान के नेतृत्व में स्थानीय लोग भी राव मालदेव की सहायता हेतु आ डंटे। प्रतिदिन दोनों सेनाओं में छुट-पुट भिड़ंत होती, जिसमें शेरशाह की सेना की हानि होती। कई दिनों की अनिर्णीत भिड़ंतो से शेरशाह तंग आ गया और उसने छुट-पुट लड़ाइयां बन्द कर दी। इस तरह कई दिनों तक सेनाएं आमने-सामने तनी रही। शेरशाह के अनिर्णय की स्थिति मे लौट पाना भी असंभव था,ऐसी स्थिति में उसने छल कपट का आश्रय लिया। शेरशाह सूरी ने राव मालदेव के सामंतों में फिरोजशाही मोहरें भिजवाई और नई ढालों के भीतर शेरशाह के फरमानों को सिलवा दिया था, उनमें लिखा था कि सामंत, राव मालदेव को बंदी बनाकर शेरशाह को सौंप देंगे। यह जाली पत्र कुटिलता से राव मालदेव के पास भी पहुंचा दिये थे। इससे राव मालदेव को अपने सेनापतियों पर सन्देह हो गया। राव मालदेव ने जोधपुर की सुरक्षा को देखते हुए युद्ध के लिए मना कर दिया और राव जैता व राव कूंपा को भी पीछे हटने का आदेश दिया, किन्तु दोनों ने पीछे हटने से मना  कर दिया। फिर भी राव मालदेव नहीं माने और सारे सैनिक लेकर पुनः जोधपुर चले गए। इस तरह मारवाड़ की सेना बिखर गई।

सेना का गठन :
अब केवल राव जैता व राव कूंपा के साथ बहुत कम सैनिक रह गए। ऐसी परिस्थिति में मगरे के नरा चौहान अपने नेतृत्व में ३००० सैनिकों को लेकर राव जैता व राव कूंपा के सहयोग के लिए आगे आये।

युद्ध :
अद्भुत पराक्रम के साथ राव जैता, राव कूंपा, राव नरा चौहान, राव लखा चौहान, राव अखैराज देवडा़, राव पंचायण, राव खींवकरण, राव सूजा,मान चारण  सहित अग्रणी सैनिकों के नेतृत्व में लगभग ८००० सैनिकों ने शेरशाह की ८० हजार सैनिकों की भारी भरकम सेना का डटकर सामना किया और ऐसा भीषण संहार किया, जिससे शेरशाह की सेना में भगदड़ मच गई। वे शेरशाह की तरफ बढ़ने लगे जिस पर एक पठान ने शेरशाह को मैदान छोड़ जाने को कहा, किन्तु  तुरन्त ही खवास खां व जलाल खां ने असंख्य सैनिकों के साथ दायीं और बायीं ओर घेरा बना लिया। इस घेरे में जैता राठौड़, कूंपा राठौड़, नरा चौहान व अनेक योद्धा तलवारों से आखिरी सांस तक संघर्ष करते रहे और वीरगति को प्राप्त हुए। इस प्रकार ८ हजार सैनिकों ने ८० हजार सैनिकों को इतनी भीषण टक्कर दी कि शेरशाह अत्यंत कठिनाई से यह युद्ध जीत पाया। इस युद्ध मे़ं सामंतों की वीरता को देखकर सूरी को ये कहना पडा़ कि " एक मुट्ठी बाजरे के लिए वह दिल्ली की सल्तनत खो देता।" यह  युद्ध ऐसा था, जिसमें साम्राज्य विस्तार के लिए नहीं हिंदुत्व की रक्षार्थ हेतु लड़ा गया। इस एक दिन के युद्ध में बादशाह के चालीस हजार से अधिक सैनिक मारे गए। हिंदूत्व रक्षार्थ हेतु गिरी सुमेल रणस्थली पर अनेक पराक्रमी शूरवीर रणखेत रहे जिसमें —— १.कूंपा मेहराजोत अखैराजोत २.जेता पंचायणोत अखैराजोत ३.भदा पंचायणोत अखैराजोत ४.भोमराज पंचायणोत अखैराजोत ५.उदय जैतावत पंचायणोत ६.रायमल अखैराजोत ७. जोगा रावलोत अखैराजोत ८.पता कानावत अखैराजोत ९.वेैरसी राणावत अखैराजोत १०.हमीर सिंहावत अखैराजोत ११.सूरा अखैराजोत १२.रायमल अखैराजोत १३. राणा अखैराजोत १४.खींवकरण उदावत १५.जैतसी उदावत १६.पंचायण करमसोत १७.नीबो आणदोत १८.बीदा भारमलोत १९.सुरताण डूंगरोत २०.वीदा डूंगरोत २१.जयमल डूंगरोत २२.कला कान्हावत २३.भारमल बालावत २४.भवानीदास राठौड़ २५.हरपाल राठौड़ २६.रामसिंह ऊहड़ २७.सुरजन ऊहड़ २८.राव नरा चौहान(३०००सैनिकों का योगदान) २९.राव लखा चौहान ३०.(भोजराज अखैराज सोनगरा ३१.अखैराज सोनगरा सहित २२ सोनगरा काम आये) ३२.अखैराज देवडा़ ३३.भाटी पंचायण जोधावत ३४.भाटी सूरा पर्वतोत ३५.भाटी जेसा लवेरा ३६.भाटी महरा अचलावत ३७.भाटी माघा राघोत ३८.भाटी साकर सुरावत ३९.भाटी गांगा वरजांगोत ४०.इंदा किशनसिंह ४१.हेमा नरावत ४२.सोढा़ नाथा देदावत ४३.धनराज सांखला ४४.डूंगरसिंह सांखला ४५.चारण मान खेतावत ४६.लुबां ४७.पठान अलदाद खां । लगभग ८ हजार वीरगति को प्राप्त योद्धाओं (राठौड़, सोनगरा, भाटी,मगरे के चौहान, देवडा़, इंदा, सांखला, मांगलिया व सोढा़ राजपूत सहित कई क्षत्रियों ने भी अपना बलिदान दिया।

शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

ब्रिटिश सरकार की ट्रेन पर कब्जा करने बाले महाराणा फतेहसिंह जी की अनसुना किस्सा



ब्रिटिश सरकार की ट्रेन पर कब्जा करने बाले महाराणा फतेहसिंह जी की अनसुना किस्सा

1857 की क्रांति का इतिहास या तो मिटाया गया या तो बदल दिया गया। वीर सावरकर की लिखी गई पुस्तके 1857 के वीरसवरी भी अंग्रेजों द्वारा जब्त कर ली गई प्रतिबन्धित कर दी गई थी। भगतसिंह आदि लोगो ने चोरिछुपे उन पुस्तको को छपबाया था। ऐसी ही एक इतिहास की घटना आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हु जो इतिहास कारकों द्वारा छुपाई गई। मेवाड़ के महाराजाओ के बारे में सारे संसार मे प्रसिद्ध है उनकी वीरता ओर बुद्धिमता। आज से करीब 150 वर्ष पहले बहा के साशक महाराणा फतेहसिंह जी हुए। उनके बारे में कहा जाता है कि बे बड़े न्याय प्रिय, बहादुर ओर बुद्धिमान थे। अन्याय कही भी हो बे सहन नही करते थे। उनके साशन काल मे उन्होंने उदयपुर के घंटाघर में एक जूता टांग रखा था अगर कोई अपराधी अपराध करता तो उसे बही जूता मारा जाता था। इस तरह का दंड बहुत हो जाया करता था उस समय की जनता के लिए, क्योंकि उस समय की जनता बड़ी भोली ओर स्वाभिमानी हुआ करती थी अगर किसी को इतना ही जूता पड़ जाता और उसका सम्मान छिन जाता तो बह जीवन में कभी कोई अपराध नही करता था। फिर भी अगर कोई संगीन अपराध किया करता तो उसे मृत्यु दंड दिया जाता था।

मई 1910 में अंग्रेजो ने उदयपुर से चित्तौड़गढ़ के बीच ट्रेन चलबाई जिसका नाम था “BB&CI” ईस रुट के बीच मे एक भूपालसागर नामक तालाब आता है जो कि काफी बड़ा तालाब है ये तालाब फतेहसिंह जी के साशन में ही आता था। एक बार तालाब का तट टूट गया और मिट्टी के कटाव के कारण ट्रेन की सभी लाइने भी टूट गई। अब अंग्रेजी सरकार ने दिल्ली से महाराज फतेहसिंह जी को पत्र भिजवाया की “आपका भूपालसागर टूट जाने के कारण हमारी ट्रेन लाइन टूट गई है जिस कारण हमें 16लाख रुपये का नुकसान हुआ है आप जल्द से जल्द ब्रिटिश सरकार को रुपये देने का बंदोबस्त करे”।
अपनी बुद्धि और वीरता का परिचय देते हुए महाराज ने अपने पेशकार को बुलाया और अंग्रेज सरकार का पत्र फाड़कर अपना पत्र लिखबाया की “आपकी ट्रेन तो बाद में आई है पहले हमारा भूपालसागर बना था। आपकी ट्रेन की गड़गड़ाहट और ट्रेन के भार की वजह से हमारा भूपालसागर टूट गया है जिसके टूटने की वजह से हमारे किसानों की फसले वर्बाद हो गई ओर इसका नुकसान हमने 32लाख रुपये आंका है अंग्रेजी सरकार जितनी जल्दी हो सके रुपये की भरपाई हमारे किसानों को करे। जब तक 32लाख रुपये नही मिलते तबतक आपकी ट्रेन मेरे कब्जे में रहेगी”।
जब ये पत्र ब्रिटिश सरकार को मिला तो सभी के सभी हैरान हो गए ब्रिटिश हुकूमत में हड़कंप मच गया की अब किया क्या जाए, कैसे इस पत्र का कटाक्ष किया जाए। अंग्रेजों ने महाराज के खिलाफ बहुत सडयंत्र रचे बहुत दुष्प्रचार किये पर वे सफल न हुए। आखिरकार थक हार कर ब्रिटिश सरकार को सभी किसानों को रुपये देने ही पड़े। तब कही जाकर मेवाड़ के साशक फतेहसिंह जी ने ब्रिटिश सरकार की ट्रेन उन्हें बापिस लौटाई।