GREAT WARRIORS FREEDOM FIGHTER OF INDIA RAJASTHAN GUJARAT HARYANA UP RAJPUT RANA PRATAP BHAGAT SINGH RANI LAXMI BAI SANGA WIKIPEDIA
बुधवार, 1 जुलाई 2020
Thakur Balwant Singh Bakhasar
पागी
सोमवार, 8 जून 2020
संत पीपाजी महाराज
गुरुवार, 4 जून 2020
जोधाबाई की एतिहासिकता
शनिवार, 30 मई 2020
तैमूर लँगड़े को भारत से बाहर खदेड़ने वाली वीरांगना रामप्यारी गुर्जर की कहानी
गुरुवार, 13 अगस्त 2015
वीर शिरोमणि दुर्गा दास राठौड़
जिसने इस देश का पूर्ण इस्लामीकरण करने की औरंगजेब की साजिश को विफल कर हिन्दू धर्म की रक्षा की थी…..उस महान यौद्धा का नाम है वीर दुर्गादास राठौर…
समय – सोहलवीं – सतरवी शताब्दी
चित्र – वीर शिरोमणि दुर्गा दस राठौड़
स्थान – मारवाड़ राज्य
वीर दुर्गादास राठौड का जन्म मारवाड़ में करनोत ठाकुर आसकरण जी के घर सं. 1695 श्रावन शुक्ला चतुर्दसी को हुआ था। आसकरण जी मारवाड़ राज्य की सेना में जोधपुर नरेश महाराजा जसवंत सिंह जी की सेवा में थे ।अपने पिता की भांति बालक दुर्गादास में भी वीरता कूट कूट कर भरी थी,एक बार जोधपुर राज्य की सेना के ऊंटों को चराते हुए राईके (ऊंटों के चरवाहे) आसकरण जी के खेतों में घुस गए, बालक दुर्गादास के विरोध करने पर भी चरवाहों ने कोई ध्यान नहीं दिया तो वीर युवा दुर्गादास का खून खोल उठा और तलवार निकाल कर झट से ऊंट की गर्दन उड़ा दी,इसकी खबर जब महाराज जसवंत सिंह जी के पास पहुंची तो वे उस वीर बालक को देखने के लिए उतावले हो उठे व अपने सेनिकों को दुर्गादास को लेन का हुक्म दिया ।अपने दरबार में महाराज उस वीर बालक की निडरता व निर्भीकता देख अचंभित रह गए,आस्करण जी ने अपने पुत्र को इतना बड़ा अपराध निर्भीकता से स्वीकारते देखा तो वे सकपका गए। परिचय पूछने पर महाराज को मालूम हुवा की यह आस्करण जी का पुत्र है,तो महाराज ने दुर्गादास को अपने पास बुला कर पीठ थपथपाई और इनाम तलवार भेंट कर अपनी सेना में भर्ती कर लिया।
उस समय महाराजा जसवंत सिंह जी दिल्ली के मुग़ल बादशाह औरंगजेब की सेना में प्रधान सेनापति थे,फिर भी औरंगजेब की नियत जोधपुर राज्य के लिए अच्छी नहीं थी और वह हमेशा जोधपुर हड़पने के लिए मौके की तलाश में रहता था ।सं. 1731 में गुजरात में मुग़ल सल्तनत के खिलाफ विद्रोह को दबाने हेतु जसवंत सिंह जी को भेजा गया,इस विद्रोह को दबाने के बाद महाराजा जसवंत सिंह जी काबुल में पठानों के विद्रोह को दबाने हेतु चल दिए और दुर्गादास की सहायता से पठानों का विद्रोह शांत करने के साथ ही वीर गति को प्राप्त हो गए । उस समय उनके कोई पुत्र नहीं था और उनकी दोनों रानियाँ गर्भवती थी,दोनों ने एक एक पुत्र को जनम दिया,एक पुत्र की रास्ते में ही मौत हो गयी और दुसरे पुत्र अजित सिंह को रास्ते का कांटा समझ कर ओरंग्जेब ने अजित सिंह की हत्या की ठान ली,ओरंग्जेब की इस कुनियत को स्वामी भक्त दुर्गादास ने भांप लिया और मुकंदास की सहायता से स्वांग रचाकर अजित सिंह को दिल्ली से निकाल लाये व अजित सिंह की लालन पालन की समुचित व्यवस्था करने के साथ जोधपुर में गदी के लिए होने वाले ओरंग्जेब संचालित षड्यंत्रों के खिलाफ लोहा लेते अपने कर्तव्य पथ पर बदते रहे।
अजित सिंह के बड़े होने के बाद गद्दी पर बैठाने तक वीर दुर्गादास को जोधपुर राज्य की एकता व स्वतंत्रता के लिए दर दर की ठोकरें खानी पड़ी,ओरंग्जेब का बल व लालच दुर्गादास को नहीं डिगा सका जोधपुर की आजादी के लिए दुर्गादास ने कोई पच्चीस सालों तक सघर्ष किया,लेकिन जीवन के अन्तिम दिनों में दुर्गादास को मारवाड़ छोड़ना पड़ा । महाराज अजित सिंह के कुछ लोगों ने दुर्गादास के खिलाफ कान भर दिए थे जिससे महाराज दुर्गादास से अनमने रहने लगे वस्तु स्तिथि को भांप कर दुर्गादास ने मारवाड़ राज्य छोड़ना ही उचित समझा ।और वे मारवाड़ छोड़ कर उज्जेन चले गए वही शिप्रा नदी के किनारे उन्होने अपने जीवन के अन्तिम दिन गुजारे व वहीं उनका स्वर्गवास हुवा ।दुर्गादास हमारी आने वाली पिडियों के लिए वीरता, देशप्रेम, बलिदान व स्वामिभक्ति के प्रेरणा व आदर्श बने रहेंगे ।
१-मायाड ऐडा पुत जाण, जेड़ा दुर्गादास । भार मुंडासा धामियो, बिन थम्ब आकाश ।
२-घर घोड़ों, खग कामनी, हियो हाथ निज मीत सेलां बाटी सेकणी, श्याम धरम रण नीत ।
वीर दुर्गादास का निधन 22 नवम्बर, सन् 1718 में हुवा था इनका अन्तिम संस्कार शिप्रा नदी के तट पर किया गया था ।
“उनको न मुगलों का धन विचलित कर सका और न ही मुग़ल शक्ति उनके दृढ हृदये को पीछे हटा सकी। वह एक वीर था जिसमे राजपूती साहस व मुग़ल मंत्री सी कूटनीति थी ”
जिसने इस देश का पूर्ण इस्लामीकरण करने की औरंगजेब की साजिश को विफल कर हिन्दू धर्म की रक्षा की थी…..उस महान यौद्धा का नाम है वीर दुर्गादास राठौर…
इसी वीर दुर्गादास राठौर के बारे में रामा जाट ने कहा था कि “धम्मक धम्मक ढोल बाजे दे दे ठोर नगारां की,, जो आसे के घर दुर्गा नहीं होतो,सुन्नत हो जाती सारां की…….
आज भी मारवाड़ के गाँवों में लोग वीर दुर्गादास को याद करते है कि
“माई ऐहा पूत जण जेहा दुर्गादास, बांध मरुधरा राखियो बिन खंभा आकाश”
हिंदुत्व की रक्षा के लिए उनका स्वयं का कथन
“रुक बल एण हिन्दू धर्म राखियों”
अर्थात हिन्दू धर्म की रक्षा मैंने भाले की नोक से की…………
इनके बारे में कहा जाता है कि इन्होने सारी उम्र घोड़े की पीठ पर
शुक्रवार, 3 जुलाई 2015
एक षड्यंत्र ... ,,शराब की घातकता
एक अनकही एतिहासिक घटना , एक षड्यंत्र ... ,,शराब की घातकता ,,
कैसे हिन्दुओ की सुरक्षा प्राचीर को ध्वस्त किया मुगलो ने ?
जानिये और फिर से सुधार कीजिये ।।
मुगल बादशाह का दिल्ली में दरबार लगा था और हिंदुस्तान के दूर दूर के राजा महाराज दरबार में हाजिर थे , उसी दौरान मुगल बादशाह ने एक दम्भोक्ति की " है कोई हमसे बहादुर इस दुनिया में ?" सभा में सन्नाटा सा पसर गया , एक बार फिर वही दोहराया गया तीसरी बार फिर उसने ख़ुशी से चिल्ला कर कहा " है कोई हमसे बहादुर जो हिंदुस्तान पर सल्तनत कायम कर सके ?
सभा की खामोसी की तोड़ती एक बुलन्द शेर सी दहाड़ गूंजी तो सबका ध्यान उस शख्स की और गया , वो जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल थे ।
रिड़मल जी ने कहा , मुगलो में बहादुरी नही कुटिलता है , सबसे बहादुर तो राजपूत है दुनिया में ,, मुगलो ने राजपूतो को आपस में लड़वा कर हिंदुस्तान पर राज किया , कभी सिसोदिया राणा वंश को कछावा जयपुर से तो कभी राठोड़ो को दूसरे राजपूतो से ,, ।
बादशाह का मुँह देखने लायक था , ऐसा लगा जेसे किसी ने चोरी करते रंगे हाथो पकड़ लिया हो ।
बाते मत करो राव , उद्धाहरण दो वीरता का । रिड़मल ने कहा "क्या किसी कौम में देखा है किसी को सिर कटने के बाद भी लड़ते हुए ?"
बादशाह बोला ये तो सुनी हुई बात है देखा तो नही , रिड़मल बोले इतिहास उठाकर देख लो कितने वीरो की कहानिया है सिर कटने के बाद भी लड़ने की ...
बादशाह हंसा और दरबार में बेठे कवियों की और देखकर बोला इतिहास लिखने वाले तो मंगते होते है में भी 100 मुगलो के नाम लिखवा दूँ इसमें क्या ? मुझे तो जिन्दा ऐसा राजपूत बताओ जो कहे की मेरा सिर काट दो में फिर भी लड़ूंगा ।
राव रिड़मल निरुत्तर हो गए और गहरे सोच में डूब गए ।
रात को सोचते सोचते अचानक उनको रोहणी ठिकाने के जागीदार का ख्याल आया ।
एक दिन अचानक रात को 11 बजे रोहणी ठिकाना (जो की जेतारण कस्बे जोधपुर रियासत) में दो घुड़सवार बुजुर्ग जागीदार के पोल पर पहुंचे और मिलने की इजाजत मांगी । ठाकुर साहब काफी वृद अवस्था में थे फिर भी उठ कर मेहमान की आवभक्त के लिए बाहर पोल पर आये ,, घुड़सवारों ने प्रणाम किया और वृद ठाकुर की आँखों में चमक सी उभरी और मुस्कराते हुए बोले जोधपुर महाराज आपको मेने गोद में खिलाया है और अस्त्र शस्त्र की शिक्षा दी है इस तरह भेष बदलने पर भी में आपको आवाज से पहचान गया हूँ । हुकम आप अंदर पधारो ।। में आपकी रियासत का छोटा सा जागीरदार , आपने मुझे ही बुलवा लिया होता ।
राव रिड़मल ने उनको झुककर प्रणाम किया और बोले एक समस्या है , और बादशाह के दरबार की पूरी कहानी सुना दी, अब आप ही बताये की जीवित योद्धा का कैसे पता चले की ये लड़ाई में सिर कटने के बाद भी लड़ेगा ?
रोहणी जागीदार बोले , बस इतनी सी बात "मेरे दोनों बच्चे सिर कटने के बाद भी लड़ेंगे और आप दोनों को ले जाओ दिल्ली दरबार में ये आपकी और रजपूती की लाज जरूर रखेंगे "
राव रिड़मल को घोर आस्चर्य हुआ की एक पिता को कितना विस्वास है अपने बच्चो पर , मान गए राजपूती धर्म को ।
सुबह जल्दी दोनों बच्चे अपने अपने घोड़ो के साथ तैयार थे , उसी समय ठाकुर साहब ने कहा , महाराज थोडा रुकिए में एक बार इनकी माँ से भी कुछ चर्चा कर लूँ इस बारे में । राव रिड़मल ने सोचा आखिर पिता का ह्रदय है कैसे मानेगा अपने दोनों जवान बच्चो के सिर कटवाने को , एक बार रिड़मल जी ने सोचा की मुझे दोनों बच्चो को यही छोड़कर चले जाना चाहिए ।
ठाकुर साहब ने ठकुरानी जी को कहा " आपके दोनों बच्चो को दिल्ली मुगल बादशाह के दरबार में भेज रहा हूँ सिर कटवाने को , दोनों में से कोनसा सिर कटने के बाद भी लड़ सकता है ? आप माँ हो आपको ज्यादा पता होगा , ठकुरानी जी ने कहा बड़ा लड़का तो क़िले और क़िले के बाहर तक भी लड़ लेगा पर छोटा केवल परकोटे में ही लड़ सकता है क्योंकि पैदा होते ही इसको मेरा दूध नही मिला था इसलिए ।।
लड़ दोनों ही सकते है ,आप निश्चित् होकर भेज दो ।
दिल्ली के दरबार में आज कुछ विशेष भीड़ थी और हजारो लोग इस द्रश्य को देखने जमा थे ।
बड़े लड़के को मैदान में लाया गया और मुगल बादशाह ने जल्लादो को आदेश दिया की इसकी गर्दन उड़ा दो , तभी बीकानेर महाराजा बोले "ये क्या तमाशा है ? राजपूती इतनी भी सस्ती नही हुई है , लड़ाई का मोका दो और फिर देखो कौन बहादुर है ?
बादशाह ने खुद के सबसे मजबूत और कुशल योद्धा बुलाये और कहा ये जो घुड़सवार मैदान में खड़ा है उसका सिर् काट दो, 20 घुड़सवारों को दल रोहणी ठाकुर के बड़े लड़के का सिर उतारने को लपका और देखते ही देखते उन 20 घुड़सवारों की लाशें मैदान में बिछ गयी ।
दूसरा दस्ता आगे बढ़ा और उसका भी वही हाल हुआ , मुगलो में घबराहट और झुरझरि फेल गयी , बादशाह के 500 सबसे ख़ास योद्धाओ की लाशें मैदान में पड़ी थी और उस वीर राजपूत योद्धा के तलवार की खरोंच भी नही आई ।।
ये देख कर मुगल सेनापति ने कहा " 500 मुगल बीबियाँ विधवा कर दी आपकी इस परीक्षा ने अब और मत कीजिये हजुर , इस काफ़िर को गोली मरवाईए हजुर ,, तलवार से ये नही मरेगा , कुटिलता और मक्कारी से भरे मुगलो ने उस वीर के सिर में गोलिया मार दी । सिर के परखचे उड़ चुके थे पर धड़ ने तलवार की मजबूती कम नही करी और मुगलो का कत्लेआम खतरनाक रूप से चलते रहा ।
बादशाह ने छोटे भाई को अपने पास निहथे बेठा रखा था ये सोच कर की यदि ये बड़ा यदि बहादुर निकला तो इस छोटे को कोई जागीर दे कर अपनी सेना में भर्ती कर लूंगा लेकिन जब छोटे ने ये अंन्याय देखा तो उसने झपटकर बादशाह की तलवार निकाल ली । उसी समय बादशाह के अंगरक्षकों ने उनकी गर्दन काट दी फिर भी धड़ तलवार चलाता गया और अंगरक्षकों समेत मुगलो का काल बन गए । बादशाह भाग कर कमरे में छुप गया और बाहर मैदान में बड़े भाई और अंदर परकोटे में छोटे भाई का पराक्रम देखते ही बनता था । हजारो की संख्या में मुगल हताहत हो चुके थे और आगे का कुछ पता नही था ।
बादशाह ने चिल्ला कर कहा अरे कोई रोको इनको ।। एक मौलवी आगे आया और बोला इन पर शराब छिड़क दो ।। राजपूत का इष्ट कमजोर करना हो तो शराब का उपयोग करो ।।दोनों भाइयो पर शराब छिड़की गयी ऐसा करते ही दोनों के शरीर ठन्डे पड़ गए । मौलवी ने बादशाह को कहा "" हजुर ये लड़ने वाला इनका शरीर नही बल्कि इनका इष्ट देव है । और ये राजपूत शराब से दूर रहते है और अपने धर्म और इष्ट को मजबूत रखते है ।
यदि मुगलो को हिन्दुस्तान पर शासन करना है तो इनका इष्ट और धर्म भृष्ट करो और इनमे दारु शराब की लत लगाओ ।। यदि मुगलो में ये कमियां हटा दे तो मुगल भी मजबूत बन जाएंगे ।
उसके बाद से ही राजपूतो में मुगलो ने शराब का प्रचलन चलाया और धीरे धीरे राजपूत शराब में डूबते गए और अपने इष्ट देव को नाराज करते गए ।
और मुगलो ने मुसलमानो को कसम खिलवाई की शराब पीने के बाद नमाज नही पढ़ी जा सकती । इसलिए इससे दूर रहिये ।।
क्षत्रिय भाइयो ये सच्ची घटना है और हमे क्षत्रिय समाज को इस कुरीति से दूर करना होगा । जब ही हम पुनः खोया वैभव पा सकेंगे और हिन्दू धर्म की रक्षा कर सकेंगे ।
एक छोटा सा प्रयास है मेरा, की ये घटना अधिक से अधिक लोगो तक पहुंचे ।।