शुक्रवार, 29 अगस्त 2025

राव जैतमालजी राठौड़

राव जैतमालजी राठौड़..
मारवाड़ के संस्थापक राव सीहाजी (१११२–१२७३) की १०वीं पीढ़ी में प्रतापी शासक राव जैतमालजी हुए। आप राव सलखाजी (१३५७–१३७४) के दूसरे नंबर के पुत्र थे। राव मल्लिनाथ जी आपके बड़े भाई थे। राव जैतमालजी बड़े प्रतापी और संत पुरुष हुए। राव जैतमालजी गढ़ सिवाना के प्रथम राठौड़ शासक थे। राव जैतमालजी मारवाड़ के एक प्रमुख शासक थे जिन्होंने 14वीं शताब्दी में शासन किया था। वह अपनी वीरता, साहस और नेतृत्व क्षमता के लिए जाने जाते थे। राव जैतमालजी ने अपने शासनकाल में अपने पड़ोसी राज्यों के खिलाफ कई सैन्य अभियान चलाए और अपनी शक्ति का विस्तार किया। उन्होंने अपने राज्य में प्रशासनिक सुधार किए और न्याय व्यवस्था को मजबूत किया। अपने राज्य में सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा दिया और कला, साहित्य और संगीत को प्रोत्साहित किया। राव जैतमालजी का शासनकाल मारवाड़ के इतिहास में एक महत्वपूर्ण काल था, और उनकी वीरता और नेतृत्व क्षमता के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है।  राव जैतमालजी के बाद नौ पीढ़ीयों ने गढ़ सिवाना पर राज किया। इसके अलावा इनके वंशजों ने राड़धरा (गुड़ा, नगर)४८, केलवा, धवा, मोरसीम, पादरू गगराणा, आगरिया, पाल बड़े ठिकानों सहित २०० से अधिक छोटे बड़े ठिकानों पर राज किया । राव जैतमालजी जितने प्रतापी शासक थे इतने ही आध्यात्मिक और संत पुरुष भी थे। 
एक बार एक चारण कवि जिन्हें कोढ़ था, उन्हें गले लगाकर अपने शरीर का स्पर्श दिया तो चारण के शरीर का सारा कोढ़ पल भर में समाप्त हो गया और उसकी देह निर्मल हो गई । लेकिन चारण कवि गले में सोने की कंठी पहने हुए होने के कारण गले में कंठी वाली जगह पर कोढ़ रह गया ।
इस बात को लेकर जैतमालजी के वंशजों ने उसी दिन से सोने की कंठी पहनने का त्याग कर दिया । 

इसको लेकर एक दोहा भी प्रचलित हैं –
कोढ़ कटयो कवियांण रो, भागो दरदभिरांम।
जण दिन बागो जैतसी, दसमो सालगरांम ।।

चारण कवि खुद लिखते है कि इससे पूर्व इस रोग से छुटकारा पाने के लिए उसने अनेक प्रयास किये तथा कई तीर्थों की यात्रा भी की पर छूटकारा नहीं मिला। अतः यह घटना राव जैतमालजी के देवत्व गुण को प्रगट करती हैं। 
राव जैतमालजी दूरदृष्टी सोच के धनी थे । उन्होंने राज्य विस्तार पर भी बहुत जोर दिया!  पर उसूलों के हमेशा पक्के रहे! उन्होंने अपने पर घाव करने वाले भाइयों पर ना कभी वार किया और ना ही पुत्रों को करने दिया।
 वीरवांण में उल्लेख मिलता हैं कि राव जैतमाल जी ने राड़धरा पर कब्जा करने के बाद गुजरात के ईडर पर पर चढ़ाई की। इससे उनके राज्य विस्तार, दूरदृष्टी सोच, भाइयों के प्रति हमेशा सकारात्मक रुख और आध्यात्मिक मजबूत पक्ष के दर्शन होते हैं। इनके वंशज जैतमालोत राठौड, धवा ठिकाने से अन्यत्र ठिकाने बस जाने के कारण धवेचा जैतमालोत राठौड़ (२४ ठिकाने) खेतसी और उनके वंशज जुंजाणीया जैतमालोत राठौड़, अजा और उनके वंशज भाथी जेतमालोत राठौड़ जीवा व उनके वंशज जागेवा राठौड़,  शोभावत जैतमालोत (पाल) कहलाये। राव जैतमालजी के वंशज वर्तमान में मारवाड़, मेवाड़, और गुजरात में बड़ी संख्या में हैं।  
ऐसे वीर प्रतापी राव जैतमालजी को बार बार वंदन और नमन है।